Breaking News
उत्तराखण्ड नगर निकाय चुनाव की अधिसूचना जल्द जारी होगी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को डोमिनिका के सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार से किया गया सम्मानित
कल से शुरू होगा भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच पहला टेस्ट, जाने मैच से जुडी बातें
मुख्यमंत्री धामी ने सौंग बांध परियोजना पर विस्थापन की कार्यवाही जल्द करने के दिए निर्देश
दूनवासियों के लिए खतरा बनी हवा, चिंताजनक आंकड़े निकलकर आए सामने
कांतारा: चैप्टर 1 की रिलीज डेट आउट, 2 अक्टूबर 2025 को सिनेमाघरों में दस्तक देगी फिल्म
उत्तराखण्ड बन रहा है खिलाड़ियों के लिए अवसरों से भरा प्रदेश- खेल मंत्री रेखा आर्या
सर्दियों में टूटने लगे हैं बाल तो इस चीज से करें मालिश, नहीं होगा नुकसान
केदारनाथ विधानसभा के प्रत्याशियों की तकदीर ईवीएम में हुई कैद

भूख जैसी समस्या का भी हल नहीं

रविशंकर
दुनियाभर के लिए भुखमरी आज एक वैश्विक समस्या बन गई है। जनसंख्या बढऩे के साथ ही विभर में भुखमरी का आंकड़ा भी दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। जबकि पृथ्वी पर हर एक इंसान का पेट भरने लायक पर्याप्त भोजन का उत्पादन हो रहा है, लेकिन फिर भी दुनिया के कुछ हिस्सों में भुखमरी बढ़ती जा रही है।हकीकत ये है कि आधुनिक दुनिया में आज हर 11वां इंसान अभी भी खाली पेट सोने को मजबूर है। मतलब की दुनिया में 73.3 करोड़ लोग ऐसे हैं,जिन्हें भरपेट खाना नसीब नहीं हो रहा है। यदि 2019 की तुलना में देखें तो इन लोगों की संख्या में 15.2 करोड़ का इजाफा हुआ है।

अफ्रीका में हालात तो और भी कहीं ज्यादा खराब है, जहां हर पांचवां इंसान भुखमरी का सामना करने को मजबूर है। ये जानकारी दुनिया में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति पर जारी एक नई रिपोर्ट में सामने आई है। ‘द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द र्वल्ड 2024’ नामक ये रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ), अंतरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष (आईएफएडी), यूनिसेफ, विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने संयुक्त रूप से प्रकाशित की है।

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि आज दुनिया की एक तिहाई आबादी ऐसी है, जो पोषण युक्त आहार खरीदने में सक्षम नहीं है। रिपोर्ट में जो आंकड़े साझा किए गए हैं वो खाद्य सुरक्षा की एक गंभीर तस्वीर पेश कर रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में 233 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन्हें नियमित तौर पर पर्याप्त भोजन हासिल करने के लिए जूझना पड़ रहा है। इनमें 86.4 करोड़ लोग वो हैं जिन्हें गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा। यानी उन्हें कुछ समय बिना खाए ही गुजारा करना पड़ा है। वास्तविकता में देखें तो पोषण के मामले में दुनिया 15 साल पीछे चली गई है और कुपोषण का स्तर 2008-2009 के स्तर पर पहुंच चुका है। हालांकि देखा जाए तो ये स्थिति तब है जब सतत विकास के लक्ष्यों के तहत 2030 तक किसी को खाली पेट न सोने देने की बात कही गई थी। मतलब की इन छह वर्षो में दुनिया को एक लंबा सफर तय करना है। रिपोर्ट में ये चेतावनी भी दी गई है कि अगर मौजूदा हालात इसी तरह से जारी रही, तो 2030 तक लगभग 58 करोड़ से ज्यादा लोग गंभीर कुपोषण का शिकार हो जाएंगे। इनमें से आधे अफ्रीका में होंगे।

साफ है, दुनियाभर में तमाम प्रोग्राम और संयुक्त राष्ट्र की कोशिशों के बावजूद खाद्य असामनता और कुपोषण जैसे मुद्दे पर अभी तक सफलता नहीं मिल पाई है। यूं तो इंसान पांच दशक पहले ही चांद पर पहुंच गया, लेकिन इसी दुनिया में आज भी करोड़ों लोगों को चांद रोटी में नजर आता है। ताजा रिपोर्ट देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि दुनिया में भुखमरी की संख्या घटने की बजाए तेजी से बढ़ रही है। साफ है, भूख की समस्या को पूरी तरह समाप्त करने के लिए अभी दुनिया को एक लंबा रास्ता तय किया जाना बाकी है। ये कैसी विडंबना है एक ओर हमारे और आपके घर में रोज सुबह रात का बचा हुआ खाना बासी समझ कर फेंक दिया जाता है तो वहीं दूसरी ओर कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें एक वक्त का खानातक नसीब नहीं हो रहा है और वे भूख से जूझ और मर रहे है।

दुनिया भर में हर साल जितना भोजन तैयार होता है उसका लगभग एक-तिहाई बर्बाद हो जाता है। बर्बाद किया जाने वाला खाना इतना होता है कि उससे दो अरब लोगों के भोजन की ज़रूरत पूरी हो सकती है। गौर करने वाली बात ये है कि दुनिया में बढ़ती संपन्नता के साथ ही लोग खाने के प्रति असंवेदनशील हो रहे हैं। खर्च करने की क्षमता के साथ ही लोगों में खाना फेंकने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। कमोबेश हर विकसित और विकासशील देश की यही कहानी है। अगर इस बर्बादी को रोका जा सके तो कई लोगों का पेट भरा जा सकता है। वहीं दूसरी तरफ, खाद्यान्न की क्षति और बर्बादी न केवल संसाधनों के कुप्रबंधन का मुद्दा है बल्कि ये बड़े पैमाने पर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भी योगदान देती है। खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) का अनुमान है कि वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के आठ प्रतिशत के लिए खाद्य अपशिष्ट भी जिम्मेदार होते हैं।

वर्तमान समय में हर देश विकास के पथ पर आगे बढऩे का दावा करता है। अल्पविकसित देश विकासशील देश बनना चाहते हैं तो वहीं विकासशील देश विकसित देशों की श्रेणी में शामिल होना चाहते हैं। इसके लिए देशों की सरकारें प्रयास भी करती हैं तथा विकास के संदर्भ में अपनी उपलब्धियों को गिनाती हैं। यहां तक कि विकास दर के आंकड़े से ये अनुमान लगाया जाता है कि कोई देश किस तरह विकास कर रहा है कैसे आगे बढ़ रहा है? ऐसे में जब कोई ऐसा आंकड़ा सामने आ जाए जो आपको ये बताए कि अभी तो देश ‘भूख’ जैसी ‘समस्या को भी हल नहीं कर पाया है, तब विकास के आंकड़े झूठे लगने लगते हैं। ये कैसा विकास है जिसमें बड़ी संख्या में लोगों को भोजन भी उपलब्ध नहीं है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top