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पाकिस्तान- चुनाव का ढकोसला

यह बहुत साफ दिखा है कि सेना की प्राथमिकता पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को सत्ता में लाना और बैकडोर से खुद शासन संभाले रखना है। आरोप है कि पूरा सरकारी तंत्र इस मकसद को हासिल करने के लिए सक्रिय रहा है। पाकिस्तान में नेशनल और प्रांतीय असेंबलियों के चुनाव के लिए आज मतदान होगा। मगर यह चुनाव एक ढकोसला से ज्यादा कुछ नहीं है। देश में सत्ता के हर सूत्र पर अपना शिकंजा और मजबूती से कस चुकी सेना इन चुनावों के जरिए दुनिया को यह बताना चाहेगी कि पाकिस्तान में भी लोकतंत्र है। मगर इस बार उसके लिए नियंत्रित निर्वाचन के जरिए ऐसा भ्रम पैदा करना संभव नहीं रह गया है। जिस तरह से देश के सबसे लोकप्रिय नेता इमरान खान और उनकी पार्टी- पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) को चुनाव मुकाबले से बाहर करने की कोशिश की गई है, उसने पहला वोट गिरने के पहले ही इन चुनावों की वैधता को लगभग समाप्त कर दिया है। तीन मामलों में ताबड़तोड़ न्यायिक फैसले सुना कर इमरान खान को लंबे समय तक जेल में रखने का इंतजाम कर लिया गया है।

इसमें एक मामले में तो खान और उनकी पत्नी बुशरा बेगम दोनों को इस आरोप में कैद सुना दी गई कि उनकी शादी इस्लामी मान्यता के मुताबिक उचित ढंग से नहीं हुई थी। पीटीआई से उसका चुनाव निशान पहले ही छीना जा चुका है। अलग-अलग चुनाव चिह्नों पर मैदान में उतरे पीटीआई के उम्मीदवारों पर मुकदमे ठोक कर या अन्य प्रशासनिक उपायों के जरिए उनके लिए मुकाबले में बने रहना कठिन बनाया गया। यह बहुत साफ दिखा है कि सेना की प्राथमिकता पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को सत्ता में लाना और बैकडोर से शासन खुद संभाले रखना है। आरोप है कि पूरा सरकारी तंत्र इस मकसद को हासिल करने के लिए सक्रिय रहा है। लाजिमी है कि इन चुनावों या उनके नतीजों को लेकर ना पाकिस्तान में और ना ही विदेशों में कोई उत्सुकता है। बल्कि इन चुनावों को इस बात की मिसाल के रूप में देखा जा रहा है कि किस तरह चुनावों का इस्तेमाल लोकतंत्र और उसकी भावना के खिलाफ किया जा सकता है। मगर देर-सबेर यह सवाल उठेगा कि आखिर ऐसे निर्वाचनों की जरूरत ही क्या है? आखिर अभी से लोग यह समझने लगे हैं कि परदे के पीछे से सत्ता नियंत्रित करने वाले शासक वर्ग के लिए चुनाव एक हथकंडा बन गए हैं।

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