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भारत अगर उत्पादन के लिए खुद को तैयार करना शुरू कर दे तो वह चीन से प्रतिस्पर्धा कर सकता है – राहुल गांधी

तीन दिन के अमेरिका दौरे पर राहुल गांधी 

दिल्ली/वॉशिंगटन। लोकसभा में विपक्ष के नेता और रायबरेली से सांसद राहुल गांधी तीन दिन के अमेरिका दौरे पर हैं। इस दौरान उन्होंने डलास में टेक्सास विश्वविद्यालय में छात्रों के साथ बातचीत की। यहां उन्होंने कहा कि भारत, अमेरिका और पश्चिमी देशों में बेरोजगारी की समस्या है, जबकि चीन इस समस्या से नहीं जूझ रहा है। उन्होंने इसकी वजह भी बताई। उन्होंने कहा कि चीन वैश्विक उत्पादन पर हावी है और यही वजह है कि वह रोजगार देने में अव्वल है। उन्होंने भारत में विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

राहुल ने कहा कि भारत में कौशल की कोई कमी नहीं है। अगर हमारा देश उत्पादन के लिए खुद को तैयार करना शुरू कर दे तो वह चीन से प्रतिस्पर्धा कर सकता है। उन्होंने व्यावसायिक और शिक्षा प्रणाली के बीच की खाई को पाटने के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण को बढ़ावा देने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने शिक्षा प्रणाली पर वैचारिक कब्जे का जिक्र भी किया। दरअसल, राहुल गांधी अमेरिका की तीन दिवसीय अनौपचारिक यात्रा पर हैं। इस दौरान वे डलास, टेक्सास और वाशिंगटन डीसी में भारतीय प्रवासियों और युवाओं से बातचीत करेंगे। सोमवार से शुरू हो रही वाशिंगटन डीसी की अपनी यात्रा के दौरान वह सांसदों और अमेरिकी सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों से भी मिल सकते हैं। वह शनिवार रात को डलास पहुंचे थे। इंडियन नेशनल ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा और इसकी अमेरिकी विंग के अध्यक्ष मोहिंदर गिलजियान ने उनका स्वागत किया था।

राहुल ने कहा कि पश्चिम में रोजगार की समस्या है। भारत में रोजगार की समस्या है, लेकिन दुनिया के कई देशों में रोजगार की समस्या नहीं है। चीन में भी रोजगार की समस्या नहीं है। वियतनाम में रोजगार की समस्या नहीं है। ऐसा क्यों? अगर आप 1940, 50 और 60 के दशक में अमेरिका को देखेंगे, तो पाएंगे कि वे वैश्विक उत्पादन का केंद्र थे। जो कुछ भी बनाया जाता था- चाहे वह कार हो, वॉशिंग मशीन हो या टीवी, सब अमेरिका में बनकर तैयार होता था। फिर यह उत्पादन धीरे-धीरे अमेरिका से बाहर चला गया। यह कोरिया गया और फिर जापान गया। आखिरकार यह चीन तक पहुंच गया। अगर आप आज देखें, तो चीन वैश्विक उत्पादन पर जोर दे रहा है।

उन्होंने कहा कि पश्चिम, अमेरिका, यूरोप और भारत ने उत्पादन के विचार को शायद पीछे छोड़ दिया है। उन्होंने इसे चीन के हवाले कर दिया है। उत्पादन का कार्य रोजगार पैदा करता है। हम जो करते हैं, अमेरिकी जो करता है, पश्चिम जो करता है, वह यह है कि हम चीनमें बनी चीजों का इस्तेमाल कैसे किया जाए? इसे व्यवस्थित करते हैं। भारत को उत्पादन के कार्य और उत्पादन को व्यवस्थित करने के बारे में सोचना होगा।

उन्होंने विनिर्माण को प्रोत्साहित करने की जरूरत पर जोर दिया। राहुल ने कहा कि यह स्वीकार्य नहीं है कि भारत बस यह कहे कि ठीक है, विनिर्माण कह लें या उत्पाद कह लें, उस पर चीन का अधिकार होगा। वियतनामियों का अधिकार होगा। बांग्लादेश का अधिकार होगा। हमें इस बारे में सोचना होगा।

राहुल ने कहा कि जब तक हम ऐसा नहीं करेंगे, हमें बेरोजगारी की बढ़ी समस्या का सामना करना पड़ेगा, और साफ है कि इससे काम नहीं चलेगा। इसलिए आप देखेंगे कि यदि हम विनिर्माण को भूलने के इस रास्ते पर चलते रहेंगे तो आप भारत, अमेरिका और यूरोप में कई सामाजिक समस्याओं को देखेंगे। हमारी राजनीति का ध्रुवीकरण इसी वजह से है। बहुत से लोग कहते हैं कि भारत में कौशल की समस्या है। मुझे नहीं लगता कि भारत में कौशल की कोई समस्या है। मुझे लगता है कि भारत में ऐसे लोगों के लिए सम्मान नहीं है।

राहुल ने कहा कि व्यावसायिक प्रशिक्षण के माध्यम से शिक्षा प्रणाली को व्यवसाय प्रणाली से जोड़ने की जरूरत है। उस अंतर को पाटना जरूरी है। व्यावसायिक प्रशिक्षण के माध्यम से इन दो प्रणालियों, कौशल और शिक्षा को जोड़ने की जरूरत है। मुझे लगता है कि वर्तमान में शिक्षा प्रणाली के साथ बड़ी समस्या वैचारिक कब्जा है, जहां विचारधारा को इसके माध्यम से परोसा जा रहा है।

उन्होंने कहा कि उन्हें पूरा विश्वास है कि भारत, चीन का मुकाबला कर सकता है, अगर वह उत्पादन के लिए खुद को तैयार करना शुरू कर दे और कौशल का सम्मान करना शुरू कर दे। तमिलनाडु जैसे राज्यों ने पहले ही यह कर दिखाया है। ऐसा नहीं है कि भारतीय राज्यों ने ऐसा नहीं किया है। पुणे ने यह कर दिखाया है। महाराष्ट्र ने यह कर दिखाया है। बस समस्या यह है कि यह उस पैमाने और समन्वय के साथ नहीं किया जा रहा है, जिसकी जरूरत है।

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