Breaking News
पॉल्यूशन से बचने के लिए कौन सा मास्क बेहतर? यहां जानिए जवाब
बेकाबू ट्रक की टक्कर से यूकेडी नेता समेत दो की मौत
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला संस्कृति व हस्तशिल की समृद्ध विरासत को देता है नयी पहचान- सीएम धामी
देश के लिए चुनौती बने सड़क हादसे
यूपी में नौ विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद बसपा ने किया बड़ा ऐलान 
हर्ष फायरिंग के दौरान नौ वर्षीय बच्चे को लगी गोली, मौके पर हुई मौत 
अपने सपनों के आशियाने की तलाश में हैं गायिका आस्था गिल
केदारनाथ विधानसभा सीट पर मिली जीत से सीएम धामी के साथ पार्टी कार्यकर्ता भी गदगद
क्या लगातार पानी पीने से कंट्रोल में रहता है ब्लड प्रेशर? इतना होता है फायदा

राजनीतिक मसला नहीं है दुष्कर्म

प्रो शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित

बलात्कार राजनीति और विचार धारा से परे है।  यह केवल एक व्यक्ति पर हमला नहीं है, बल्कि समाज के ताने-बाने पर भी है, जो मर्यादा, कर्तृत्व और मानवता का हनन है।  इक्कीसवीं सदी में ऐसी बर्बरता के लिए स्थान नहीं होना चाहिए था, पर कोलकाता की भयावह घटना उस असफलता को रेखांकित करती है, जो संस्थागत है और चुनिंदा रोष में पैबस्त है।  भारत एक सभ्यता- एक स्त्रीवादी सभ्यता- है, जहां स्त्रैण को सम्मानित किया जाता है।  यह सदी ऐसा युग होना चाहिए, जहां बर्बरता की निंदा स्पष्ट होनी चाहिए, न्याय शीघ्र होना चाहिए और मानव मर्यादा की पवित्रता सर्वोच्च होनी चाहिए।

फिर भी, कोलकाता मामले में वही राजनीतिकरण और चुनिंदा रोष का चिंताजनक रुझान दिखता है, जो निराशाजनक है।  इस मुद्दे पर भारत-विरोधी तत्वों की चुप्पी शर्मनाक है।  देश के भीतर और बाहर ऐसे समूहों ने सामाजिक मसलों पर अपनी चिंता जताने और अन्याय के विरुद्ध बोलने के कथित नैतिक दावे पर अपनी वैधता बनायी है।  न्याय व्यक्तियों और व्यक्तिगत विचारों से ऊपर है।  कोई सरकार हो, बलात्कार आपराधिक है।  इसका राजनीतिकरण या इसे भटकाना भी समान रूप से आपराधिक है।

नेतृत्व में स्त्रियों के उभार का स्वागत बीसवीं सदी के सबसे अहम राजनीतिक विकासों में एक के तौर पर किया गया था।  अब इस सदी में उस नेतृत्व से आशाएं बहुत बढ़ गयी हैं, पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना उनमें प्रमुख है।  कोलकाता की घटना इस कटु सत्य को इंगित करती है कि मात्र स्त्री नेतृत्व होने से महिलाओं को बेहतर या सुरक्षित माहौल नहीं मिल जाता।  इस प्रकरण में जो हुआ है है, वह बेहद चिंताजनक है।  पीड़िता की पहचान को प्रशासन द्वारा सार्वजनिक क्यों किया गया? भारतीय न्याय संहिता की धारा 72 में स्पष्ट प्रावधान है कि मर्यादा एवं निजता की रक्षा के लिए बलात्कार पीड़िता की पहचान सुरक्षित रखी जानी चाहिए।

फिर भी, लापरवाही दिखाते हुए आरजी कार मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य संदीप घोष ने पहचान उजागर किया।  विरोध और उनके इस्तीफे के तुरंत बाद ही उन्हें कलकत्ता नेशनल मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल का प्राचार्य बना दिया गया।  संदीप घोष का बयान भी दर्ज नहीं किया गया।  यह कानूनी और नैतिक नियमों का खुला उल्लंघन है।  यह पीड़िता एवं उसके परिवार का ही अपमान नहीं है, बल्कि सरकार एवं न्याय व्यवस्था पर भी सवाल है।  इससे पश्चिम बंगाल के सत्ताधारियों की जवाबदेही को लेकर गंभीर प्रश्न उठाते हैं।  पहचान उजागर करना लापरवाही होने के साथ न्याय एवं मानवता के सिद्धांतों का अपमान भी है।

भारत में महिला सुरक्षा वर्षों से सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा रहा है।  फिर भी चुनिंदा पाखंड से इस मुद्दे को नुकसान होता रहा है।  यह नारी अधिकार का मसला ही नहीं रहा है, बल्कि राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा बन गया है, जहां निंदा कभी कभी ही की जाती है।  कुछ माह पहले संदेशखाली में ऐसा ही मामला सामने आया था।  दिल्ली का निर्भया मामला हो या हैदराबाद में 2019 में एक चिकित्सक की हत्या का मामला हो, पाखंड स्पष्ट दिख जाता है।  तृणमूल कांग्रेस देश-विदेश के स्तर पर लगभग हर मामले में मुखर विरोध के लिए जानी जाती है।  उदाहरण के लिए, पिछले साल नवंबर में पश्चिम बंगाल सरकार के एक मंत्री जावेद खान ने इस्राइल-फिलिस्तीन संघर्ष को लेकर इस्राइली और अमेरिकी उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान किया था।

लेकिन जब अपने ही राज्य के मसले सामने आते हैं, तब उनके लिए मसलों को देखने का पैमाना बदल जाता है।  यह बड़े अफसोस की बात है कि पीड़िता की पहचान और अपराध की जगह को लेकर ही सारी चर्चा हो रही है।  इसी तरह से बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे हमलों को लेकर दोहरा मानदंड अपनाया जा रहा है।  इसी तरह, कश्मीर में भारतीय सेना को बलात्कारी कहा जाता है, पर हिंदू महिलाओं के बलात्कार और हत्या पर चुप्पी साध ली जाती है।  मानवाधिकार को लेकर सक्रिय कथित अंतरराष्ट्रीय संगठनों का रवैया भी ऐसा ही रहा है।  एमनेस्टी इंटरनेशनल ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर होने वाले अत्याचारों पर कोई रिपोर्ट जारी नहीं की है, जबकि भारत में रोहिंग्या को प्राथमिकता दी जाती है।  उनका महिला अधिकारों से लेना-देना नहीं है, यह सब राजनीतिक और विचारधारात्मक एजेंडे के आधार पर होता है, जिसमें न्याय, समानता, यहां तक कि सामान्य समझ को भी नकार दिया जाता है।

क्या ममता बनर्जी सरकार से जिम्मेदारी लेने और सही काम करने के लिए कहना गलत है? दोषी को बचाने के लिए राजनीतिक और प्रशासनिक तंत्र का गलत इस्तेमाल ऐसी परिपाटी है, जिसे किसी भी सरकार को बर्दाश्त नहीं करना चाहिए।  दोषी को बचाने और पीड़ित को दोष देने की इस संस्थागत परिपाटी की काली छाया समाज पर है।  इससे अपराधियों का मनोबल बढ़ता है।  सरकार से स्त्रियों के प्रति सक्रिय और संवेदनशील होने की मांग अतार्किक नहीं है, बल्कि यह मूलभूत अपेक्षा है, जिसे पूरा किया जाना चाहिए।  यह वह क्षण है, जब हर पार्टी और नेता को अपने पूरे संसाधनों के साथ एक होकर ऐसे घिनौने अपराधों का प्रतिकार करना चाहिए।

तृणमूल सरकार अक्सर लोकतंत्र एवं न्याय जैसे राजनीतिक आदर्शों के प्रति अपने संकल्प को अभिव्यक्त करती है।  अब उसे उन आदर्शों को वास्तव में पूरा करना चाहिए।  उनके कुछ बड़े मुखर सांसद आश्चर्यजनक रूप से अब चुप हैं।  क्या यह घटना इंगित करती है कि पश्चिम बंगाल में स्थिति बहुत खराब हो चुकी है, वहां कोई विधि-व्यवस्था नहीं है? देशभर में लोग क्षुब्ध हैं।  घटना पर शीघ्र कार्रवाई करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति पूरी तरह से अनुपस्थित है।  ऐसा लगता है कि बलात्कारियों को बचाने का प्रयास हो रहा है।  पुलिस ने यह जानते हुए भी कि यह एक सामूहिक बलात्कार है, तो दूसरों को गिरफ्तार क्यों नहीं किया?

बलात्कार को हिंसा के एक हथियार के रूप में इस्तेमाल होने का प्रतिकार करने के लिए व्यापक एकता आवश्यक है।  त्वरित सुनवाई कर ऐसे अपराध के लिए मृत्युदंड देने से एक स्पष्ट संदेश जायेगा कि ऐसे अपराध को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा और कोई भी अपराधी बच नहीं सकता है।  ऐसा करना जरूरी है।  अब राजनीतिक विभाजनों से ऊपर उठकर नैतिक चेतना को जगाने का समय है।  बलात्कार राजनीतिक नहीं है।  यह उन लोगों के लिए शर्मनाक है, जो ऐसे घिनौने अपराध होने देते हैं और इस पर परदा डालने की कोशिश करते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top