Breaking News
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लाओ पीडीआर में जापानी और फिलीपीन रक्षा मंत्रियों से की मुलाकात
ट्रक और इनोवा की टक्कर से छह युवाओं की दर्दनाक मौत के मामले में कंटनेर ड्राइवर की हुई पहचान, जल्द होगी गिरफ्तारी 
38वें राष्ट्रीय खेलों के दृष्टिगत शासन ने जारी किया संशोधित शासनादेश
भारतीय संस्कृति और परंपराएं गुयाना में फल-फूल रही है- प्रधानमंत्री
गंगा किनारे अश्लील वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल करने वाले युवक- युवती पर मुकदमा दर्ज 
डिजाइनर सूट पहन रकुल प्रीत सिंह ने दिखाई दिलकश अदाएं, एक्ट्रेस की हॉटनेस देख फैंस हुए घायल
कृषि मंत्री गणेश जोशी ने 28वी आई०सी०ए०आर० क्षेत्रीय समिति-प्रथम की बैठक में वीडियो कान्फ्रेंसिग के माध्यम से किया प्रतिभाग
….तो अब मसूरी को मिलेगी जाम के झाम से निजात
ठंड में घुटने के दर्द से परेशान हैं? राहत पाने के लिए रोजाना 15 मिनट करें ये एक्सरसाइज

सड़क और फुटपाथ हर रोज चकाचक क्यों नहीं

अली खान
बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को कहा कि जब प्रधानमंत्री या कोई वीआईपी आता है, तो सडक़ों और फुटपाथ को चकाचक कर दिया जाता है। यदि एक दिन यह हो सकता है, तो सभी लोगों के लिए हर रोज क्यों नहीं हो सकता। आखिरकार, नागरिक टैक्स देते हैं, और साफ-सुथरे और सुरक्षित फुटपाथ पर चलना उनका भी मौलिक अधिकार है।

बता दें कि जस्टिस एमएस सोनक और जस्टिस कमल खता की खंडपीठ ने कहा कि सुरक्षित और स्वच्छ फुटपाथ मुहैया कराना राज्य प्राधिकरण का दायित्व है। राज्य सरकार के केवल यह सोचने से काम नहीं चलने वाला कि शहर में फुटपाथ घेरने वाले अनिधकृत फेरीवालों की समस्या का समाधान कैसे निकाला जाए। उल्लेखनीय है कि हाई कोर्ट ने शहर में अनिधकृत रेहड़ी-पटरी वालों की समस्या पर पिछले वर्ष स्वत: संज्ञान लिया था। पीठ ने कहा कि उसे पता है कि समस्या बड़ी है, लेकिन राज्य और नगर निकाय सहित अन्य अधिकारी इसे ऐसे ही नहीं छोड़ सकते। हम अपने बच्चों को फुटपाथ पर चलने को कहते हैं,  लेकिन चलने को फुटपाथ ही नहीं होंगे तो हम उनसे क्या कहेंगे? इस बीच आम-आदमी के मस्तिष्क में इस सवाल का कौंधना स्वाभाविक है कि आखिर, मूल अधिकार से क्या अभिप्राय है?

दरअसल, मूल अधिकार ऐसे अधिकारों का समूह है जो किसी भी नागरिक के भौतिक (सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक) और नैतिक विकास के लिए आवश्यक हैं। मौलिक अधिकार किसी भी देश के संविधान द्वारा प्रत्येक नागरिक को दी गई आवश्यक स्वतंत्रता और अधिकारों के एक समूह को भी संदॢभत करते हैं। ये अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता की आधारशिला को भी निर्मिंत करते हैं तथा नागरिकों की राज्यों के मनमाने कार्यों एवं नियमों से सुरक्षा प्रदान करते हैं। बुनियादी मानवाधिकारों एवं स्वतंत्रताओं को सुनिश्चित करते हैं। एक राष्ट्र के भीतर लोकतंत्र, न्याय और समानता को बनाए रखने के लिए ये अधिकार संविधान के अभिन्न अंग हैं। इन अधिकारों को मौलिक अधिकार माना जाता है, क्योंकि ये व्यक्तियों के सर्वागीण विकास, गरिमा और कल्याण के लिए आवश्यक हैं। इनके असंख्य महत्त्व के कारण ही उन्हें भारत का मैग्ना कार्टा भी कहा गया है। ये अधिकार संविधान द्वारा गारंटीकृत और संरक्षित हैं, जो देश के मूलभूत शासन को संदॢभत करते हैं।
दरअसल, हकीकत यह है कि शहरी भारत में पैदल चलने के लिए वर्तमान में कई बाधाओं और रुकावटों से गुजरना पड़ता है, जिसके कारण अक्सर किसी की सुरक्षा को जोखिम में डालना पड़ता है। यहां तक कि कभी-कभी किसी की जान भी जोखिम में पड़ जाती है।

भारतीय शहरों में पैदलयात्रियों की उपेक्षा केवल पैदलयात्रियों की सुविधाओं को कम प्राथमिकता देने और उनके खराब क्रियान्वयन का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह एक बड़े प्रणालीगत मुद्दे का भी प्रतिबिंब है। दरअसल, भारत में पैदलयात्रियों के लिए कानूनी अधिकारों और उपायों की व्यापक व्यवस्था का अभाव है। कमोबेश सभी शहरों की अधिकांश सडक़ों पर अतिक्रमण का बोलबाला है। अतिक्रमण के चलते फुटपाथ गुम हो गए हैं। इन पर जनता का अधिकार है। मौजूदा वक्त में फुटपाथ की समस्या नासूर बन चुकी है। चिंता की बात है कि इस समस्या का कोई स्थायी समाधान नहीं हो सका है। लिहाजा, सरकार को चाहिए कि जनता के लिए स्वतंत्र और सुरक्षित फुटपाथ मुहैया करवाए। फुटपाथ पर बैनर लगाने वालों पर भी कड़ी कार्रवाई की जाए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top